Friday 2 December 2011

राजपूतों की ऐसी कहानी है , कि राजपूत ही राजपूत कि निशानी है l
हम जब आये तो तुमको एहसास था , कि कोई एक शेर मेरे पास था ll

हम गरम खून के उबाल हैं , प्यासी नदियों की चाल हैं , l
हमारी गर्जना विन्ध्य पर्वतों से टकराती है और हिमालय की चोटी तक जाती है ll
हम थक कर बैठेने वाले रड बांकुर नहीं ठाकुर हैं .... l

गर्व है हमें जिस माँ के पूत हैं , जीतो क्यूंकि हम राजपूत हैं ll
हम मृतयु वरन करने वाले जब जब हथियार उठाते हैं l
तब पानी से नहीं शोनीत से अपनी प्यास बुझाते हैं

"JAI RAJPUTANA"

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